मंगला गौरी काशी के प्राचीन गौरी मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में लोगों की अटूट आस्था है। काशी के लोग इस मंदिर में दर्शन के लिये बहुत ज्यादा आते हैं। कुंडली में मंगल दोष के निवारण के लिये भी लोग इस मंदिर में आकर मां मंगला गौरी से प्रार्थना करते हैं। साथ ही योग्य वर और संतान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये भी मंदिर में दर्शन करने की परंपरा है। ये मंदिर काशी खंडोक्त है यानी स्कंद पुराण के काशी खंड में इस मंदिर का वर्णन मिलता है।
कहावत के अनुसार एक बार भगवान सूर्य ने पंचगंगा घाट में एक शिव लिंग और एक देवी की मूर्ति स्थापित की और भगवान शिव की प्रार्थना में लीन हो गये। भगवान सूर्य की प्रार्थना की तीव्रता से वहाँ अत्यधिक गर्मी पड़ने लगी। सभी जीवित प्राणियों के लिए ये गर्मी असहनीय हो गयी और सभी चराचर जीव जगत में ठहराव आ गया। जब भगवान शिव और देवी पार्वती को इस बारे में पता चला तब दोनों भगवान सूर्य के सामने प्रकट हुए।
भगवान सूर्य ने अपनी आँखें खोलीं और देवी पार्वती और भगवान शिव की स्तुति गान शुरू कर दिया, जिसके बाद शिव-पार्वती ने प्रसन्न होकर भगवान सूर्य को कई दिव्य कामनाएं प्रदान कीं।
इसके बाद भगवान शिव ने सूर्य से कहा कि यहां स्थापित देवी मूर्ति को आज से मंगला गौरी के नाम से जाना जाएगा। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ मंगला गौरी की पूजा करेगा उसे सभी सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। साथ ही अविवाहित लड़कियों को जल्द ही योग्य वर और निःसंतान दंपतियों को संतान का आशीर्वाद मिलेगा।
मंगला गौरी देवी की पूजा के लिए चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) के शुक्ल पक्ष की तृतिया तिथि का काफी महत्व है। इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के काशी खंड के अध्याय 49 में आता है।
मंगला गौरी K-24/34,पंचगंगा घाट पर स्थित है। वाराणसी के चौक इलाके से इस स्थान तक पैदल जा सकते हैं। मंगला गौरी मंदिर एक प्रसिद्ध स्थल है। इसके अलावा पंचगंगा घाट तक नाव के जरिये भी इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।