वाराणसी. गणेश चतुर्थी के अवसर पर लोहटिया स्थित बड़ा गणेश मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ रही। 40 खंभों पर बने इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु दर्शन, पूजन, अर्चन और नमन करते हैं। यहां दर्शन करने से हर मुराद पूरी होती है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ठी चतुर्थी कहा जाता है। आज ही के दिन कृष्ण पक्ष में प्रथम देवाधिदेव भगवान गणपति का आविर्भाव हुआ था।
इसी कारण संकष्ठी चतुर्थी का ज्यादा महत्व है। भगवान गणेश का यह मंदिर काशी का विख्यात मंदिर है। यहां गणेश के सबसे स्वयंभू मूर्ति का दर्शन होता है। महंत रामानंद तिवारी ने बताया कि यहां बंद कपाट में खास पूजा होती है। इसे देखने की किसी को अनुमति नहीं है। यहां चौथ के वक्त भादो माघ महीने में भव्य मेला लगता है। मंदिर का इतिहास दो हजार साल पुराना है। यहां पर इनका श्रृंगार और दर्शन पूजन की विशेष महत्ता है।
40 खंभों पर बना है मंदिर आचार्य राघवेश पूरी बताते हैं कि हिंदू शैली के मुताबिक, किसी भी भवन और मंदिर का 40 खंभों पर टिका होना शुभ होता है। ये मंदिर भी 40 खंभों पर ही टिका है। मंदिर में कुछ जगहों पर मीनाकारी के निशान हैं। पत्थरों को तराश कर इस मंदिर को बेहद खूबसूरत रूप दिया गया है। यहां के नक्काशीदार दरवाजे से लेकर पाए तक सब कुछ निराले हैं। चांदी के छत्र के नीचे भगवान विराजमान हैं। मान्यता है की एक जमाने में बाबा विश्वनाथ के करीब से होते हुए गंगा प्रवाहित होती थी। ढुंढीराज गणेश जो विश्वनाथ द्वार पर हैं उनके स्वरुप की भी यहां पूजा होती है।
पांच फूट की प्रतिमा के त्रिनेत्र हैं रामानंद तिवारी ने बताया ऐसी ही एक मान्यता है की 2000 साल पहले जब काशी में गंगा के साथ मंदाकिनी का अस्तित्व था। उसी समय ये प्राकृतिक प्रतिमा निकली थी जो आज भी अपने मूल रूप में है। मूर्ति के पीछे का हिस्सा देखकर आप खुद भी अंदाजा लगा सकते हैं की इसमें कुछ अलग ही बात है। करीब साढे 5 फ़ुट की प्रतिमा है जो त्रिनेत्र के रूप में विद्यमान है। यहां गणेश जी पिछले 2 हजार सालों से अपने परिवार के साथ वास कर रहे हैं। उनकी पत्नी ऋद्धि और सिद्धि दोनों पुत्र शुभ और लाभ के साथ विराजित हैं।