• +91 9389998456
  • banarasghumo24@gmail.com
  • Sai Vatika Apartment, Bank Colony, Sigra, Varanasi

Ashtabhuja Devi temple

अष्टभुजा मंदिर

अष्टभुजा देवी का मंदिर विंध्याचल मां विंध्यवासिनी की मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. विंध्य पर्वत के 300 फुट ऊंचाई पर स्थित मां अष्टभुजा मंदिर पर जाने के लिए 160 पत्थर की सीढ़ियां बनी हुई है. देवी की प्रतिमा एक लंबी और अंधेरी गुफा में है. गुफा के अंदर दीप जलता रहता है, जिसके प्रकाश में श्रद्धालु देवी मां का दर्शन गुफा में करते हैं. प्राकृतिक गोद में बसा हुआ मां का अष्टभुजा मंदिर बड़ा दिव्य और रमणीक है. यह स्थान अपने शांत और सुंदर दृश्यों के कारण भक्तों के साथ-साथ पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय है.

बताया जाता है द्वापर युग से जुड़ी हुई यह अष्टभुजा मां भगवान कृष्ण की बहन है. पापी कंस ने अपनी मृत्यु के डर से अपनी बहन देवकी को पति सहित कारागार में कैद कर लिया था. अपने विनाश के भय से वह देवकी की कोख से जन्म लेने वाले हर बच्चे को वध करता गया. इसी बीच देवकी के कोख से ज्ञान की देवी अष्टभुजा अवतरित होती है, जो कंस के हाथों से छूट कर विंध्याचल पहाड़ी पर विराजमान होती है और तब से मां अष्टभुजा अपने भक्तों को अभय प्रदान कर रही हैं. विंध्य पर्वत पर त्रिकोण मार्ग पर स्थित ज्ञान की देवी मां सरस्वती रूप में मां अष्टभुजा के दर्शन के लिए नवरात्र में देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं का तांता लगता है.

बताया जाता है द्वापर युग से जुड़ी हुई यह अष्टभुजा मां भगवान कृष्ण की बहन है. पापी कंस ने अपनी मृत्यु के डर से अपनी बहन देवकी को पति सहित कारागार में कैद कर लिया था. अपने विनाश के भय से वह देवकी की कोख से जन्म लेने वाले हर बच्चे को वध करता गया. इसी बीच देवकी के कोख से ज्ञान की देवी अष्टभुजा अवतरित होती है, जो कंस के हाथों से छूट कर विंध्याचल पहाड़ी पर विराजमान होती है और तब से मां अष्टभुजा अपने भक्तों को अभय प्रदान कर रही हैं. विंध्य पर्वत पर त्रिकोण मार्ग पर स्थित ज्ञान की देवी मां सरस्वती रूप में मां अष्टभुजा के दर्शन के लिए नवरात्र में देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं का तांता लगता है.

माँ अष्टभुजा का जन्म दुराचारी कंस के घर में हुआ था और वह भगवान कृष्ण की बहन थीं। महामाया ने कंस को चेतावनी दी थी, "तुम्हारे जैसा दुष्ट मेरा क्या बिगाड़ लेगा?" तुम्हें मारने वाला पहले ही पैदा हो चुका है।" ऐसा कहकर देवी आकाश की ओर उड़ गईं और विंध्य पर्वत पर उतर गईं, जिसका वर्णन मार्कंडेय ऋषि ने दुर्गा सप्तशती में इस प्रकार किया है "नंद गोप गृहे जाता यशोदा गर्भ संभव, ततस तौ नष्टयिष्यामि विंध्याचल निवासिनी"।

तभी से मां विंध्यवासिनी विंध्य पर्वत पर निवास कर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती आ रही हैं। नवरात्रि के दौरान विंध्यधाम में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। अष्टभुजा देवी मंदिर में अष्टभुजा देवी की पूजा और दर्शन के बिना त्रिकोण परिक्रमा अधूरी है। विंध्य क्षेत्र के एक तरफ आदि शक्ति माता विंध्यवासिनी हैं, जबकि दूसरी तरफ महाकाली और महासरस्वती (अष्टभुजा देवी) हैं, जो इस क्षेत्र को एक पवित्र तीर्थ स्थल बनाती हैं।