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Baba Kinaram Mandir

वाराणसी के बाबा कीनाराम

सिद्धों की नगरी वाराणसी (Varanasi News) में एक और सिद्ध हुए हैं बाबा कीनाराम (Baba Keenaram)। इनकी आयु भी 170 साल के आसापास बताई गई। यह अघोर परंपरा के संत थे। इनके साथ भी अनेकों चमत्‍कार जुडे़ हैं। देश भर में घूमते हुए यह गुजरात के गिरनार पर्वत पर बसे, इसके बाद ये काशी में स्थित हो गए। कहा जाता है कि एक बार काशी नरेश अपने हाथी पर सवार होकर इनके आश्रम से होकर गुजर रहे थे। उन्‍होंने उपेक्षा भरी दृष्टि से अघोरी वेष में बाबा कीनाराम को देखा। इस पर बाबा ने आश्रम की एक दीवार से कहा, ‘चल आगे।’ इतना सुनते ही वह दीवाल सजीव हो उठी और हाथी के आगे-आगे चलने लगी। काशी नरेश फौरन समझ गए कि उनसे भूल हुई है और उन्‍होंने बाबा कीनाराम से माफी मांगी।

बाबा कीनाराम का जन्‍म 1601 में चंदौली जिले में हुआ था। बचपन से ही विरक्‍त स्‍वभाव के थे। घूमते-घूमते यह वर्तमान बलिया जिले के कारों गांव के पास कामेश्‍वर धाम पहुंचे। यहां इन्‍हें रामानुजी संप्रदाय के संत शिवराम को अपना गुरु बनाया। शिवराम ने पहचान लिया था कि यह बालक आसामान्‍य है। इसके बाद कीनाराम यहां से भी आगे चल दिए।

रास्‍ते में उन्‍होंने देखा कि एक बुजुर्ग महिला बहुत रो रही है। पूछने पर उसने कहा कि उसके इकलौते बेटे को लगान न चुकाने पर जमींदार के लोग पकड़ कर ले गए है। कीनाराम वहीं पहुंचे, उन्‍होंने देखा कि उस युवक को एक जगह बंदी बनाकर बैठा रखा है। कीनाराम ने कहा, जहां यह बैठा है वहां की जमीन खोदी जाए। अपार धन-दौलत है, जितनी चाहे ले ले, बदले में युवक को छोड़ दिया जाए।’ जमींदार को भरोसा नहीं हुआ, लेकिन जब खोदा गया तो बात सच निकली। जमींदार उनके पैरों में गिर गया और उनका भक्‍त बन गया। जब वह युवक लौटकर अपनी मां के पास पहुंचा तो उस बुजुर्ग महिला ने यह कहते हुए उसे बाबा कीनाराम के साथ कर दिया कि आप ही ने इसे मुक्‍त कराया है अब यह आपका ही है। उस युवक का नाम बीजाराम था। बाद में वही कीनाराम बाबा की महासमाधिक के बाद वाराणसी में मठ का उत्‍तराधिकारी बना।

कीनाराम बीजाराम को लेकर लेकर गुजरात के गिरनार पर्वत पर पहुंचे। गिरनार पर्वत को अवधूतों का पवित्र स्‍थल माना जाता है। माना जाता है कि भगवान दत्‍तात्रेय वहां आज भी दर्शन देते हैं। जब कीनाराम बीजाराम के साथ जूनागढ़ पहुंचे तो भिक्षा मांगने के अपराध में उन्‍हें नवाब ने जेल में डाल दिया। वहां 981 पत्‍थर की चक्कियां थीं जिन्‍हें उन्‍हीं की तरह साधु संत चला रहे थे। बीजाराम को भी चक्‍की चलाने को कहा गया। शिष्‍य को खोजते कीनाराम भी वहां पहुंच गए। पता चला कि वह जेल में है तो जेल जाने के लिए उन्‍होंने भी भिक्षा मांगने का बहाना बनाया। उन्‍हें भी जेल में बीजाराम के पास बंदी बनाकर पहुंचा दिया गया। जेल में उन्‍होंने एक लकड़ी उठाकर चक्‍की को ठोंककर कहा, चल चाकी। इसके बाद सारी 981 चक्कियां अपने आप चलने लगीं।

जब इस चमत्‍कार की खबर नवाब तक पहुंची तो उसने बाबा से माफी मांगी और वचन दिया कि जो भी साधु महात्‍मा जूनागढ़ आएगा उसे बाबा के नाम पर हर रोज ढाई पाव आटा दिया जाएगा। बाबा की अनंत कहानियां हैं, 1761 में इन्‍होंने महासमाधि ले ली। वह लंबे समय तक वाराणसी के क्रींकुण्‍ड में रहे।