काली खोह मंदिर माँ विंध्यवासिनी मंदिर से लगभग 2 किमी दूर है। यह एक जंगली इलाके में स्थित है जो काफी सुनसान है और यहाँ ज़्यादा भीड़ नहीं होती। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक भयंकर आकृति है जिसके दो उभरे हुए नेत्र हैं। इसके ऊपर दो रक्षक हैं। मंदिर लाल रंग से रंगा हुआ है। माँ काली की मूर्ति एक छोटे से गुफा मंदिर में है, जिसे संशोधित किया गया है। मूर्ति एक काले पत्थर की है जिसमें दो हमेशा सतर्क आँखें अपने भक्तों को देखती रहती हैं। आँखों को चांदी से सजाया गया है।
भक्तजन यहां शांति, समृद्धि और भय तथा शत्रुओं पर विजय पाने के लिए प्रार्थना करते हैं। जादुई प्रकृति के परिणाम चाहने वाले तांत्रिक साधक काली खोह में देवी काली की पूजा करते हैं। काली खोह मंदिर के पीछे एक भैरव मंदिर स्थित है और यह मंदिर देश भर से तांत्रिकों को आकर्षित करता है। यह तांत्रिक पूजा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
माँ काली की आसमान की ओर देखती हुई मूर्ति को जो कोई भी देखता है अचंभे से देखता रह जाता है। इस मंदिर की काली माँ की विचित्र मूर्ति की पौराणिक कहानी बड़ी दिलचस्प और अनोखी है। जो शक्ति स्वरूपा माँ काली की धरतीवासियों के प्रति असीम प्रेम को दर्शाती है।
यह कहानी है रक्तबीज नामक राक्षस की, जिसे यह वरदान प्राप्त था कि यदि कोई उसका वध करता है तो उसके शरीर से निकलने वाला रक्त जहाँ कहीं भी गिरेगा, वहाँ अपने आप नये -नये रक्तबीज दानव पैदा हो जायेंगे। एक बार अपने तप – बल के चलते दानव रक्तबीज ने देवलोक पर अपना अधिकार कर लिया। वहाँ पहुँच कर वह सभी देवताओं को सताने लगा।
सारे देवतागणों ने भयभीत होकर देवलोक छोड़ दिया। दानव रक्तबीज ने चारों तरफ त्राहि-त्राहि मचा दी। देवताओं में यह चिंता व्याप्त हो गयी कि इस अदभुद वरदान प्राप्त राक्षस रक्तबीज का संहार किस प्रकार किया जाये। तब ब्रह्मा जी ने माँ विन्ध्यवासनी से विनती की कि वे माँ काली का ऐसा रूप धारण करें जिनका मुख आसमान की ओर हो, ताकि ऊपर देवलोक में दानव रक्तबीज के वध के बाद उसका रक्त धरती पर गिरने के पहले ही काली माँ उस राक्षस के रक्त का पान कर लें, जिससे उसके रक्त की एक भी बूंद धरती पर न गिरने पाये और धरती दानवों की उत्पत्ति से बची रहे।
माँ विन्ध्यवासनी ने देवताओं की इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। उन्होनें रक्तबीज का वध करने के लिये माँ काली का खेचरी मुद्रा वाला रूप धारण किया। उसके बाद माँ ने उस दानव रक्तबीज का संहार किया और उसका सारा रक्त पी गयीं। जिसके कारण धरती पर राक्षस रक्तबीज के रक्त की एक भी बूंद नहीं गिरी और इस प्रकार धरती पर दानवों का साम्राज्य होने से बच गया। धरतीवासियों का सदा कल्याण चाहने वाली काली खोह वाली माँ आज भी विंध्य पर्वत पर अपने भक्तों का दुख हर रही हैं।