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हाथ में डंडा, मुंह में पान बनारसी गुरु की यही पहचान

हाथ में डंडा, मुंह में पान बनारसी गुरु की यही पहचान

भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी द्वारा उल्लेखित ये पंक्तिया किसी को भी ये बताने के लिए पर्याप्त है की पान की अहमियत एक बनारसी के लिए कितनी है। ये कहावत यु ही नहीं बनी है। पुराने ज़माने में बनारसी जब घर से बहार कही भी जाता था तो ये चिंता साथ में रहती थी की उस जगह मिज़ाज़ का पान मिलेगा या नहीं! इस लिए घर से निकलते ही अपने पनेदी से दिन, समय और मौसम के हिसाब से पन्ना की थैली बनवाकर दिन की शुरूवात होती थी। धीरे धीरे ये थैली और पान बनारस की पहचान हो गए !

रोचक तथ्य 01 -

आज़ादी में भी है बनारसी पान का योगदान ग़दर के समय आजादी के आंदोलन को जब बनारस में ही रहकर तमाम क्रांतिकारी और आंदोलनकारी आगे बढ़ा रहे थे. उनके लिए एक दुसरे को आंदोलन से जुडी महत्त्वपूर्ण सूचना एक दुसरे से सांझा करना बहुत मुश्किल होता जा रहा था। समय से सन्देश न पहुंचने के कारण बहुत आंदोलन कि धार पर भी असर पद रहा था ! उस वक्त इस बनारस के पान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बनारस के पान के ठोंगे में अखबारों का इस्तेमाल किया जाने लगा. चौगड़े में सुर्ती- सुपारी और चूने की पुड़िया के साथ चिट्ठियों की एक पुड़िया अलग से रखी जाने लगी, अंग्रेज सरकार का शक पान के ठोंगे पर नहीं जाता था और इस तरह कई वर्षो तक पान का बीड़ा पोस्टकार्ड का काम करता रहा !.

रोचक तथ्य 02 -

पान कि उत्पति को लेकर जीत चाहे जिसकी हो अंतर्राष्ट्रीय न्यालय में श्री उत्पति चाहे जहा हो लंका, बांग्लादेश और भारत लेकिन पान को सद्गति के बीच मुकदमा चल रहा है! बनारस में आकर प्राप्त होती

खाइके पान बनारस वाला

बॉलीवुड की जान है बनारस का पान

पान के ऊपर भारत की फ़िल्मी दुनिया में कई गाने बनाये गए है, लेकिन पान से बनारस का जुड़ाव ही इतना रहा की पान पर सबसे लोकप्रिय गाना भी बनारस से जुड़ा है ! बनारसी पान पर ये गाना बनारस के रहने वाले अनजान साहब ने लिखा था और गाने के बोल थे खाइके पान बनारस वाला फिल्म थी डॉन और गाने पर जैम कर नाचे थे सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ! पान पर सिर्फ यही एक गाना नहीं है और भी बहुत गाने है जो पान पर लिखे गए और मशहर है जैसे:-

जर्दा कि जन्मभूमि है बनारस नगरी

भोले के भक्तो को भांग पसंद है और भांग के बाद पान पसंद है! बनारसी पान खा कर आने वाली खुशबू लोगो को अपनी और आकर्षित करती है। जिस ने पान नहीं खाया है उसे पान खाने को प्रेरित करती हैं। लेकिन ऐसी खुशबू पैदा करना अकेले पान के बस कि बात नहीं है। पान के साथ मिले हुए द्रव्य जैसे कत्था और जर्दा का इसमें अहम् योगदान होता है! कच्चे तम्बाकू के पत्ते में काली मिर्च, केसर, कस्तूरी, इलायची को मिलाकर उसमें उसमे गुलाब केवड़े, मेंहदी, का अर्क मिश्रित कर सुगन्धित किया जाता है केसर को अरबी में जाफरानी भी कहा जाता है ! इसलिए बनारस में बने सुगन्धित जर्दे को जाफरानी जर्दे का नाम दिया गया ! बनारसी पान में सुपारी भी विशिस्ट किस्म कि होती है। सुपारी कोपा अणि में भिगोकर फिर उसे पत्थर में रगड़ कर तैयार किया जाता है! इस प्रकार कि सुपारी शीतलता देने वाली होती है और गड़ती भी नहीं !

काशी और पान

पान को पूरे भारत में खाया या चबाया जाता है लेकिन अगर कोई आपसे कहे कि बनारस में पान नहीं खाया जाता तो चौकिये मत, ये सही बात है, बनारस में पान खाया नहीं जाता "पान जमाया जाता है" या " पान घुलाया जाता है " ! बनारस के खान और पान में खान से ज्यादा पान का महत्व है ! उत्सव, तीज त्यौहार शादी ब्याह इन सब में खान से ज्यादा पान कि चर्चा ! एक बनारसी कि जुबान में " खानवा तो जइसन रहा ठीकै बा, पनवा में दम नहीं

पान के पत्तो के है कई प्रकार

बनारस का सबसे प्यारा पान है। मघई पान, मघई के बाद जगन्नाथी पान का नंबर आता है। केतकी, बैतूल, मोछडा, मोहनपुरी, रहमपुरी, छतरपुरी, चंद्रकला, मटियाली, हल्दिया, साँची, सोफिया, महोबा, इत्यादि कई प्रकार के पान के पत्तो को पका कर बनारसी बीड़े के लायक बनाया जाता है !

झक सफ़ेद कुर्ते से है पान का मेल

कुरता और धोती वो भी " सफ़ेद बनारसके झक . रईसों का पुराना पहनावा रहा है! सफ़ेद झक कुरता और पान से लाल होठ का एक अद्भुत संगम होता है जो दूर से ही लोगो का ध्यान आकर्षित कर ले ! पान दिन भर तहज़ीब के साथ मुँह में घुलता रहता लेकिन मजाल नहीं की कुर्ते पर अपनी लालिमा का एक बिंदु मात्रा भी जाने थे और अगर ये दुर्घटना होती है तो गलती पानवाले की " गुरु अइसन लगौला की मुहे में आउतै नाही बा बहरें झांकता

आयुर्वेद में पान हैं वरदान

पान पाचन को बेहतर बनाने में सहायक है। यह मुंह की बदबू दूर करता है। पान में क्या खास पान के पत्ते में डाएस्टेस (Diastase) नाम का एंजाइम होता है जो स्टार्च को पचाने में मदद करता है। भारतीयों का खाना काफी स्टार्च युक्त होता है जैसे चावल, आलू आदि। पान में इस्तेमाल होने वाला कत्था एक एंटिसेप्टिक होता है जो दांत की बीमारियों को दूर रखता है। विश्व प्रसिद्ध हेल्थ मैग्जीन लैंसेट (Lancet ) का कहना है कि चूना भी एंटीसेप्टिक होता है और इसमें मौजूद कैल्शियम की वजह से यह हड्डियों और प्रेग्नेंसी में फायदेमंद होता है। अगर सुपाड़ी इसमें डालें तो भुनी हुई ही डालें। यह कफ के रोगों का नाश करती है और खाने में रुचि पैदा करती है। ध्यान रहे गीली सुपाड़ी न खाएं। पान में अगर मुलेठी डालें तो गला साफ रहता है और स्वर बेहतर होता है, साथ ही एसिडिटी में भी फायदा होता है। इलाइची मुंह में स्वाद पैदा करती है और बदबू खत्म करती है, बड़ी सौंफ बदबू नाशक होती है और पाचन में मददगार होती है। लॉंग भी दांत की बीमारियों को दूर करता आयुर्वेद के अनुसार, खाना खाने के बाद पान खाया जा सकता है। दिन में 2-3 से ज्यादा पान न लें।

पान घुलाने वाले बनारसी चाचा - इनकी बोली बूझो तो जाने

दुनिया में कई तरह की तपस्या है पर बनारस में दो तपस्वी सब से मशहूर है ! पहला वो जो पान घुलाते है ! पान घुलाने की ये साधना उनको मौनी बाबा की श्रेणी में डालती है ! पीक तब तक बाहर नहीं आएगी जब तक बोलने वाली बात की कीमत मुँह में घुले हुए पान से ज्यादा ना हो ! अगर पीक के बाद बात बोली गयी हो तो उसे काटने की जुर्रत मत करियेगा क्योंकि उस बात में वजन बहुत ज्यादा होगा ! दूसरी तपस्या उनकी है जो मुँह में पान घुलाये हुए मौनी बाबा की "का की कूँ और हूँहां ही" का मतलब बाकी श्रोता गांव को समझाना बड़ी मुश्किल का काम है! अक्सर गृह लक्ष्मी और वंशज ही इन तो का एक बार में मतलब निकाल पाते है और बाकि उपस्थित श्रोतागण को | तपस्वी महोदय का मंतव्य समझाते है ! मुँह में पान घुलाये चाचा सारी बाते कह जाते है जान जाये पर पान ना जाये बस घंटो चुप रह जाते है

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