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Panchkoshi Yatra Varanasi – मुक्ति और मोक्ष का परिक्रमा पथ है पंचक्रोशी

Panchkoshi Yatra Varanasi – मुक्ति और मोक्ष का परिक्रमा पथ है पंचक्रोशी

ऐसी मान्यता है कि काशी क्षेत्र में देहान्त होने पर जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं, परन्तु काशी क्षेत्र कौन सा है, काशी क्षेत्र की सीमा निर्धारित करने के लिए पुराकाल में पंचक्रोशी मार्ग का निर्माण किया गया। काशी खंड के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु युद्ध के मध्य पैदा हुए दिव्या ज्योतिपुंज की उर्जा पांच कोस (11 मील) तक फ़ैल गयी थी ! दिव्या ऊर्जा से संचित और वरुणा और असि के मध्य स्थित क्षेत्र को पांचकोसी कहा गया है।

काशी की परिक्रमा करने से सम्पूर्ण पृथ्वी की प्रदक्षिणा का पुण्यफल प्राप्त होता है। भक्त सब पापों से मुक्त होकर पवित्र हो जाता है। तीन पंचक्रोशी परिक्रमा करने वाले के जन्म- जन्मान्तर के सभी पाप नष्ट होजाते हैं।

काशीवासियों को कम से कम वर्ष में एक बार पंचकोसी परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि अन्य स्थानों पर किए गए पाप तो काशी की तीर्थयात्रा से उत्पन्न पुण्याग्नि में भस्म हो जाते हैं, परन्तु काशी में हुए पाप का - नाश कवल पंचकोसी प्रदक्षिणा से ही संभव है।

पंचक्रोशी यात्रा रोचक तथ्य

पद्म पुराण के अनुसार इस यात्रा के अंतर्गत तीर्थयात्री पांच कोस के घेरे में यात्रा करते है ! यात्रा मार्ग शंख की आकृति के समान है ! इस यात्रा के दौरान तीर्थयात्री 108 तीर्थ स्थलों व मंदिरो में जाते है ! यहाँ 56 शिवलिंगो, 11 विनायको, 10 शिव गणो, 10 देवियो, 04 विष्णुओं, 02 भैरवो तथा 15 अन्य तीथी का दर्शन पूजन होता है।

पंचक्रोशी यात्रा की पूर्णता पर गवाह बनते है गणेश जी ( यात्रा - नियम - पड़ाव )

परिक्रमा नंगे पांव की जाती है। वाहन से परिक्रमा करने पर पंचक्रोशी यात्रा का पुण्य नहीं मिलता। शौचादित्रिया काशी क्षेत्र से बाहर करने का विधान है। परिक्रमा करते समय शिव-विषयक भजन-कीर्तन करने का विधान है। कुछ ऐसे भी यात्री होते हैं, जो सम्पूर्ण परिक्रममा दण्डवत करते हैं। परिक्रमा अवधि में शाकाहारी भोजन करने का विधान है। पंचक्रोशीयात्रा मणिकर्णिकाघाट से प्रारम्भ होती है । सर्वप्रथम यात्रीगणमणिकर्णिकाक ुण्ड एवं गंगा जी में स्नान करते हैं। इसके बाद परिक्रमा संकल्प लेने के लिए ज्ञानवापी जाते है। यहां पर पंडे यात्रियों को संकल्प दिलाते हैं। संकल्प लेने के उपरांत यात्री श्रृंगार गौरी, बाबा विश्वनाथ एवं अन्नपूर्ण जी का दर्शन करके पुनः मणिकर्णिका घाट लौट आते हैं। यहां वे मणिकर्णिकेश्वर महादेव एवं सिद्धि विनायक का दर्शन-पूजन करके पंचक्रोशीयात्रा का प्रारम्भ करते हैं। गंगा के किनारे-किनारे चलकर यात्री अस्सी घाट आते है। यहां से वे नगर में प्रवेश करते है।

लंका, नरिया, करौंदी, आदित्यनगर, चितईपुरहोते हुए यात्री प्रथम पड़ाव कन्दवा पर पहुंचते हैं। यहां वे कर्दमेश्वरमहादेव का दर्शन-पूजन करके रात्रि विश्राम करते हैं। रास्ते में पडने वाले सभी मंदिरों में यात्री देव पूजन करते हैं। अक्षत और द्रव्य दान करते हैं। रास्ते में स्थान-स्थान पर भिक्षार्थी यात्रियों को नंदी के प्रतीक के रूप में सजे हुए वृषभ का दर्शन कराते हैं और यात्री उन्हें दान-दक्षिणा देते हैं। कुछ भिक्षार्थी शिव की सर्पमालाके प्रतीक रूप में यात्रियों को सर्प-दर्शन कराते हैं और बदले में अक्षत और द्रव्य-दान प्राप्त करते हैं। कुछ सड़क पर चद्दर बिछाए बैठे रहते हैं। यात्रीगण उन्हें भी निराश नहीं करते । अधिकांश यात्री अपनी गठरी अपने सिर पर रखकर पंचक्रोशीयात्रा करते हैं । परित्रमा अवधि में यात्री अपनी पारिवारिक और व्यक्तिगत चिन्ताओं से मुक्त होकर पांच दिनों के लिए शिवमय, काशीमय हो जाते हैं । दूसरे दिन भोर में यात्री कन्दवा से अगले पड़ाव क े लिए चलते हैं। अगला पड़ाव है भीमचण्डी । यहां यात्री दुर्गा मंदिर में दुर्गा जी की पूजा करते हैं और पहले शीतला पड़ाव के कर्मकाण्ड को दुहराते हैं। अधिकांश यात्री अपनी गठरी अपने सिर पर रखकर पंचक्रोशीयात्रा करते हैं। पपंचक्रोशीयात्रा का तीसरा पडाव रामेश्वर है। यहां शिव मंदिर में यात्रीगणशिव पूजा करते हैं। परिक्रमा अवधि में यात्री अपनी पारिवारिक और व्यक्तिगत चिन्ताओं से मुक्त होकर पांच दिनों के लिए शिवमय, काशीमय हो जाते हैं। चौथा पड़ाव पांचों पण्डवा है। यह पड़ाव शिवपुर क्षेत्र में पडता है। यहां पांचों पाण्डव (युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल तथा सहदेव) की मूर्तियां हैं। द्रौपदीकुण्ड में स्नान करके यात्रीगणपांचों पाण्डवों का दर्शन करते हैं। रात्रि विश्राम के उपरांत यात्री पांचवे दिन अंतिम पड़ाव के लिए प्रस्थान करते हैं। अंतिम पड़ाव कपिलधारा है यात्रीगणयहां कपिलेश्वर महादेव की पूजा करते हैं काशी परिक्रमा में पांच की प्रधानता है। यात्री प्रतिदिन पांच कोस की यात्रा करते हैं। पड़ाव संख्या भी पांच है परिक्रमा पांच दिनों तक चलती है। कपिलधारा से यात्रीगण मणिकर्णिक घाट आते हैं। यहां वे साशी विनायक (गणेश जी ) का दर्शन करते हैं। मान्यता है कि गणेश जी भगवान शंकर के सम्मुख इस बात का साक्ष्य देते है की अमुक यात्री ने पंचक्रोशीयात्रा कर कशी की परिक्रमा की है। इसके उपरांत काशी विश्वनाथ एवं काल भैरव का दर्शन कर यात्रा संकल्प पूर्ण - करते हैं। जिस वर्ष अधिमास (अधिक मास) लगता है, उस वर्ष इस महीने में पंचक्रोशीयात्रा की जाती है। पंचक्रोशी (पंचकोसी) यात्रा करके भक्तगण भगवान शिव और उनकी नगरी काशी के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं। लोक में ऐसी मान्यता है कि पंचक्रोशी यात्रा से लौकिक और पार लौकिक अभीष्टिकी सिद्धि होती है।

काशी विश्वनाथ एवं काल भैरव का दर्शन कर यात्रा संकल्प पूर्ण करते हैं। जिस वर्ष अधिमास (अधिक मास) लगता है, उस वर्ष इस महीने में पंचक्रोशीयात्रा की जाती है। पंचक्रोशी (पंचकोसी) यात्रा करके भक्तगण भगवान शिव और उनकी नगरी काशी के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं। लोक में ऐसी मान्यता है कि पंचक्रोशी यात्रा से लौकिक और पार लौकिक अभीष्टिकी सिद्धि होती है।

रावण वध के कारण श्री राम चंद्र पर भी ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, श्री राम के कुल गुरु श्री वशिष्ठ व अन्य ऋषियों ने उन्हें काशी जाकर पंचक्रोशी परिक्रमा करने की सलाह दी क्योकि पूर्व में भी भैरव जी के ब्रह्म हत्या का अभिशाप काशी में आकर समाप्त हुआ था ! अपने कुल गुरु व ऋषियों की बात को मानते हुए भगवान श्रीराम ने भी ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति के लिए काशी में पंचक्रोशी यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने रामेश्वर में शिवलिंग स्थापित किया था। महाभारत काल में भी पंचक्रोशी यात्रा का महत्त्व सामने आता है। जब अज्ञातवास के समय पांडव को कुरुक्षेत्र युद्ध का अंदेशा हो गया था उस समय उन्होंने काशी आकर भगवन के दर्शन किये और कौरवो के साथ होने वाले युद्ध में विजय की कामना के साथ पंचक्रोशी यात्रा की और उन्हें युद्ध में विजय मिली। शिवपुर स्थित पड़ाव पर पांडवों द्वारा जो शिवलिंग स्थापित किए, उनके ही नाम से जाने जाते हैं।

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